
कभी बर्फ को जलते हुए देखना हो तो इधर आजाना ,
कभी सफ़ेद पहाड़ो को सुर्ख होते देखना हो तो अजाना !
ये वादी -ए -कश्मीर हे जिसके चाहने वाले तो बहुत हे ,
लेकिन यहा कश्मीरियत को बचाने वाले गुम हे !
जवानी दीवानी होकर सडको पर पत्थरों से खेलती हे ,
दीवानी जवानी को सँभालने के लिए गोली बोलती हे !
सियासी हाकिम इस बीमार कश्मीर की नफ्ज टटोलते हे ,
लेकिन उन्हें कौन बताए , बीमार कश्मीर नहीं हुकूमत हे !
सब खोए खोए से हे कश्मिरिअत को लेकर ,
और रोई रोई सी हे आज वादी -इ -जन्नत !
उस माँ की आंख के अंशु सूखे भी न थे ,
की सियास्त्दारो ने बेटे के कफ़न से आज़ादी का झंडा बना लिया !
एक कफ़न तो तिरंगे झंडे वाला भी हे ,
लेकिन इसकी वजह दुश्मन की गोली नहीं हे !
सुलगती बर्फ पर स्याह होती जन्नत -ए - हिंदुस्तान देख आना ,
वक्त मिले तो कफ़न में लिपटे बेटे और माँ के आंशु भी पोछ आना !!!
No comments:
Post a Comment