
नसीब में लिखा कौन बदल पाया हे
हथेली में बनी लकीरे खंजर से बदला नहीं करती
जिन दीवानो पर खुदा की मेहर होती हे
वो तलवारों के साया से डरा नहीं करते .
इश्क रूहानी वास्ता हे सूरत से होता नहीं
दीवारे कितनी भी ऊँची क्यों न हो
आशिकों को जुदा कर सकती नहीं
फिर क्न्यो दुनिया वाले नफरत की रीत निभाते हे
प्यार को भी दुश्मनी का बहाना बनाते हे!!!
'ये कविता खास तौर से श्री र र पाण्डेयजी के लिए ...जो कोई भी इन अरमानो को पसंद करे
मेरी छोटी सी गुजारिश पे ध्यान दे और मुझे यह तक लाने के लिए श्री र र पाण्डेय जी को शुभकामनाए जरुर दे!!!!"
- आज़म खान
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