Friday, May 18, 2012

बेटा घर लौट आया !


बेटे के फ़ौज में भरती हो जाने की ख़ुशी में परिवार ने पूरे गाँव की दावत की थी.  पूरे गाँव को सजाया गया था. फ़ीकी और पुरानी हो चुकी सजावट अब भी कंही-कंही धुंधली यादों की तरह बाकी थीकच्ची सड़क पर धूल उड़ाते हुए, नीले रंग का ट्रक सुमित के गाँव की तरफ तेज़ी से रहा था.ट्रक से उड़ा धूल का गुबार, बवंडर की शक्ल इख्तियार कर चुका था. गाँव में पसरा सन्नाटा, होने वाली अनहोनी का संकेत भर था. आगे का रास्ता सकरा होने की वजह सेट्रक आगे नहीं जा सका,सो अब उन्हें पैदल ही जाना होगाये ट्रक CRPF का था.  ट्रक वहीँ रुका रहा लेकिन ट्रक से नीचे कोई नहीं उतरा. फौजी गाड़ी को देख कर गाँव में अफरा-तफरी मच गई . थोड़ी ही देर में ट्रक को चारो तरफ से भीड़ ने घेर लिया. गांववाले उचक-उचक कर ट्रक के अन्दर देखने की कोशिश कर रहे थे. ट्रक में चार जवान थे और एक काले रंग का बक्सा था. बक्से पर सफ़ेद रंग से सुमित पाटिल और फ़ोर्स नंबर लिखा हुआ था. सुमित का सामान तो था लेकिन सुमित नहीं था. धूल के गुबार को चीरती हुई सफ़ेद रंग की अम्बुलेंस भी कुछ ही देर में ठीक ट्रक के पीछे खड़ी हुई . अम्बुलेंस में भी सुमित नहीं था. C.R.P.F. के जवानों के गाँव में आने की खबर सुन कर सुमित के पिता अरविन्द दौड़े चले आये और आते ही पूछा "मेरा बेटा ठीक तो है". उन्हें ये खबर मिल चुकी थी कि "नक्सलियों ने C.R.P.F. के जवानों पर गढ़चिरौली में हमला किया हैउन दिनों सुमित भी वही तैनात था . जवानों के साथ आए अफसर ने सुमित के पिता को जवाब दिया "फ़ौज को आपके बेटे पर गर्व है, वो बहुत बहादुर था, सुमित मरा नहीं शहीद हुआ है.  ये जवाब किसी भी पिता को जीवन भर के लिए मूक कर देने को काफी था. अरविन्द जी कुछ बोल सके, सिर्फ आँखों से आंसुओं का सैलाब फूट पड़ा. वो शायद चीख-चीख कर रोना चाहते होंगे लेकिन कैसे रोते, उनका सब कुछ लुट चुका था. बाप के काँधे पर जवान बेटे की लाश से ज्यादा भारी बोझ इस संसार में भला क्या हो सकता था. सैकड़ो लोगों की भीड़ तिरंगे में लिपटे सुमित को देखना चाह रही थी. चार जवान सुमित के शव को कांधे पर लिए हुए भीड़ के बीच से होते हुए सुमित के घर की तरफ बढ़ रहे थे. भीड़ शांत थी, कोई कुछ नहीं बोल रहा था. सुमित की माँ को इस बात का अंदेशा हो गया था की कोई अनहोनी घटी है. लेकिन एक माँ कैसे सोच लेती की उसका बेटा इस दुनिया में अब नहीं रहा. जैसे ही सुमित का शव जवानों ने कांधे से उस आंगन में रखा गया जहाँ सुमित ने कभी चलना सीखा होगा, अरविन्द जी बोले देख तेरा "बेटा लौट आया है". माँ दौड़ी-दौड़ी आई और तिरंगे से लिपटे ताबूत को पीट-पीट कर रोने लगी. ताबूत खोला गया तो कई आंखे सहम गई. सुमित का शरीर टुकडो में था, जैसे फटे पुराने कपड़ो को बेतरतीब रख कर सिल दिया गया हो. बारूदी सुरंग धमाके में सुमित के साथ ११ और जवानों की भी मौत हुई. मांस के चिथड़ो से गुथी सुमित की लाश काफी अच्छी हालत में थी जो घर तक पहुँच सकी. क्या हर बेटा ऐसे ही घर लौटता है?
    नक्सलवाद एक गंभीर समस्या है इसके आगे घुटने टेकने वाली सरकारें कम से कम पकडे गए नक्सलियों को छोड़ कर सुमित के जैसे शहीदों का थोडा सम्मान जरुर कर सकती हैं. नक्सली हमले नासूर बनते जा रहे हैं और अब वक्त गया है कि इस नासूर को कुरेद कर हमेशा के लिए खत्म कर दिया जाए

By:- Azam khan


Published In "AAJ SAMAJ"

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