Tuesday, May 22, 2012

तेरी चाहत में.....!





है कितनी मोहब्बत, कैसे कर दू बयाँ 
तू मेरा हमसफ़र, तू मेरा हमनवां 
तेरी सोहबतों की है, आदत मुझे 
कैसे खत्म करूँ ये जो है दूरियां !

नहीं जी सकता तेरे बिन यहाँ,
तेरी ही पनाहों में रहना मुझे,
क्यों न फिर तुझ में जियों,
है तुझ में बसा,बस मेरा जहाँ

तेरे इश्क को, है दिल में बसाया
तू मेरी रूह का एक हिस्सा सा है,
तेरी चाहतों में हो जांऊं फ़ना,
तुझसे आगे अब मैं सोचूं तो क्या !

आ मिल जा मुझसे, तू हो जा मेरा
मेरे ख्वाबों को, तू अब हकीकत बना
सिर्फ एहसासों को, अब जी ले हम
कुछ ऐसे तू अब मुझ में समा !

-आज़म खान

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