Friday, March 30, 2012

एहसास..........

कुछ  खो  सा  रहा  था 
तुम  से  दूर  हो  रहा  था
कुछ  कदमो  का  फासला  था 
फिर  भी  न  तय  हो  रहा  था !
आँखों में आंसुओं का शैलाब लिए 
क्यों तुम खामोश खड़ी थी 
घर से गली तक तो चली आई तुम 
क्यों मुझ तक न अ सकी तुम 
कुछ तो था जो हमें रोक रहा था 
खता न तेरी थी न मेरी 
फिर क्यों ये रिश्ता तरस रहा था !
तुम रोकना चाहती थी मुझे 
मैं मुड़ कर हमेशा की तरह तुम्हे न देख पाया 
तुम्हे अकेले उस मोड़ पर छोड़ आया
मैं तुमसे दूर जा चूका था !
काश हम खुद में न सिमटे रहते 
दरमियाँ जो फासले है उन्हें एहसासों से बाट लेते !


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