कुर्बानिओं के दौर अब नहीं रहे ,
कुर्बान होने वाले सरफ़रोश भी नहीं रहे I
फांसी के फंदे को चूमने वाले नहीं रहे,
अहल-ए-वतन के दीवाने भी नहीं रहे I
मौत से नज़रे मिलाने वाले नहीं रहे,
शहादत की दुआ मांगने वाले भी नहीं रहे I
ईमान की राह से गुज़रने वाले नहीं रहे,
और जो गुज़रे थे उनके निशान भी नहीं रहे I
आज़ादी के हिस्सेदार है सब, हक़दार नहीं रहे ,
शहीदों के कफ़न और कब्र के सौदागर रह गए I
हम और तुम जज्बा-ए-वतन को ढूंढते रहे ,
और शहीद-ए-आज़म यादों में भी नहीं रह गए I
--आज़म खान
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