Sunday, January 8, 2012

एहसासों में सिर्फ ग़म है!


आँखों में ख्वाब जम के मर गए,
सांसों में सिर्फ सिसकियाँ हैं !
बातों में अनकहे अल्फ़ाज रह गए
एहसासों में सिर्फ ग़म है!
उम्मीदों पर अँधेरे कही से गए
हवाओं में काटों की चुभन है
सडको के दामन भीग कर रह गए
कोई सूरज आंच देना भूला है
हाथ रगड़ खाते गर्मी बटोरते रह गए,  
तनहा जिन्दगी लावारिस सी है
बाशिंदे घरों में कैद रह गए
करवटें बदलता शहर ठण्ड में मजबूर है !   
                        -आज़म खान 

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