Sunday, November 20, 2011

जरा बताओ मैं तुम्हारी जिन्दगी में कहाँ हूँ !!!

ज़रा बताओ मैं तुम्हारी जिन्दगी में कहाँ हूँ,
कोहरे से घिरी सुबह में,
सुबह की नरम धूप में,
खिड़की से उतरती रौशनी में,
दोपहरी में सुकून देती छांव में,
तेज़ बारिश में या रिमझिम में,
गहरी सोंच में या ख़्वाब में,
सांसों की खुसबू में या धडकनों में,
अँधेरी उजियारी रात में,
बादलों में छिपते तारों में,
चाँद की सुनहरी चांदनी में,
इजहार में या इकरार में,
एहमियत में या जरुरत में,
जरा बताओ मैं तुम्हारी जिन्दगी में कहाँ हूँ!!!

-आज़म खान 


Thursday, October 27, 2011

अफ्स्पा फिलहाल जरुरी है !

अकेले जम्मू कश्मीर में अमनबहाली में हजारों जवानों की जान गई है. सरकारें अफस्पा को हटाने के लिए सोच भी न पाई थी और आतंकियों के हौसले बढ़ने लगे हैं.कश्मीर में शांति बहाली सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफस्पा) की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. भारतीय सेना अफस्पा के बिना शायद घाटी में आसानी से अतान्त्कावाद को नहीं कुचल पाती. पिछले कुछ सालों में घाटी के हालात लगातार सुधर रहे हैं. पिछले साल की हिंसात्मक घटनाओ को छोड़ दिया जाए तो सेना ने प्रसंशनीय काम किया है. सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून सैनिक कारवाइयों को अंजाम तक पहुचाने में काफी मदत्गार रहा है. लेकिन एक तरफ जहाँ पुर्वोत्री राज्यों और घटी में शांति बहाल हो रही है वहीँ सेना के द्वारा अफस्पा के दुरुपयोग की घटनाओ में भी काफी बढ़ोतरी हुई है. सेना की साख पर बढ़ते बदनामी के दाग उन शहीदों के लिए शर्मिंदगी का सबब है जिन्होंने देश के लिए कुर्बानी दी है. सेना के जवानों पर फर्जी एन्कोउन्टर से लेकर बलात्कार जैसे संगीन आरोप लगते रहे हैं. सेना को अपने स्तर पर इन घटनाओं की गंभीरता से जांच पड़ताल करनी चाहिए और दोषियों का सज़ा देनी चाहिए.
अफस्पा को हटा देने से आम जनता की समस्याएँ कम होने के बजाए और बढ़ जाएंगी. अफस्पा के बगैर सैनिक कारवाई पर असर पड़ेगा और आतंकी बेख़ौफ़ हो जाएँगे. सच ये भी है की सिर्फ बन्दूक के दम पर अमन बहाली पूरी तरह से नहीं हो सकती. आतंक से प्रभावती राज्यों में सरकारों के सामने सबसे बड़ी चुनौती जनता को बुनियादी सुविधाओं के साथ साथ अच्छी शिक्षा और रोजगार के इंतजामात करने की है. सेना के बगैर आतंक का खात्मा संभव नहीं है. जरुरी ये है की अफस्पा के दुरुपयोग को रोका जाये और सरकार आतंक प्रभावित राज्यों में प्रगति के काम शुरू करे. इससे जनता में सरकार और सेना के प्रति विश्वास बढेगा. जब सरकार और सेना दोनों जनता के साथ होंगे तो अफस्पा का दुरूपयोग नहीं हो पाएगा.

Monday, October 24, 2011


टीम अन्ना के लगभग तमाम सदस्य आज भ्रष्टाचार के सवालों में घिरे हुए हैं. जलपुरुष राजेंदर सिंह और राजगोपालजी का टीम अन्ना से पल्ला झाड़ लेना इस बात का सबूत है की सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. जिस अन्ना आन्दोलन से देश भर को उम्मीद थी अब वो फीका पड़ता जा रहा है. जनता की आवाज बन कर उभरे अन्ना हजारे मौन हैं, लेकिन ब्लॉग पर लिखित रूप में बोल रहे है. सब कुछ राजनीतिक ड्रामे से ज्यादा कुछ नहीं लग रहा. टीम अन्ना के प्रमुख सदस्य प्रशांत भूषण, अरविन्द केजरीवाल और किरण बेदी विवादों के बाद उसी जाल में फंसते चले जा रहे हैं जो उन्होंने सरकार के लिए तैयार किया था. सब पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं. नैतिकता की अब कोई बात न करे तो ही बेहतर है. अब बात तो इस बात पर आके रुकी है की कौन कम भ्रष्ट है. किरण जी ने जो किया या उनसे जो हुआ वो तकीनीकी तौर पर तो भ्रष्टाचार ही है.पूरे प्रकरण से एक बात तो साफ़ है की मीडिया ने टीम अन्ना को आइना दिखाया है. जनता की अगुवाई करने के लिए नैतिकता का पाठ पढ़ाने वालों को अपना दामन भी पाक साफ़ रखना चाहिए.
जिन के दामन पर दाग है क्या वो जनलोकपाल के साबुन से भ्रष्टाचार का दाग जनता की जिन्दगी से मिटा पाएँगे? अन्ना ब्रांड से जनलोकपाल साबुन को पॉपुलर तो बना दिया गया है लेकिन संसद की फैक्ट्री से जब ये बन कर निकलेगा तो ये कितना भरोसेमंद होगा ये बताने के लिए तो अन्ना जी को एक और ब्लॉग पोस्ट लिखना चाहिए. जनता के पास अभइ सस्ता आकाश नहीं पहुंचा है तो सब लोग उनके ब्लॉग पोस्ट नहीं पढ़ सकते, अन्ना जी मौन व्रत तोडिये और अब ये बताएं की क्या जनलोकपाल के दायरे से टीम अन्ना बाहर है? जनता को अन्ना जी के जवाब का इंतज़ार है.

Tuesday, September 20, 2011

क्या अलीशा की अम्मी वापस आएंगी!

सलामवालेकुम,
सलाम करने से अल्ल्लाह खुश होते हैं और नेकियाँ भी मिलती हैं.
अम्मी कहती हैं अल्लाह सारे गुनाह माफ़ कर देते है. रोज़े और इबादत के बाद तो अल्लाह बहुत खुश होते हैं, सारी दुआएं कबूल कर लेते है. जब मैं छोटी थी तब से हर साल रोज़ा रक्खा है, रोज नमाज भी पढ़ती हूँ. लेकिन फिर भी अल्लाह मेरे एक गुनाह को माफ़ नहीं करते. अम्मी से बद्तमीजी की, एक दिन सलाम करना भूल गई और अल्लाह नाराज हो गए अम्मी भी नाराज हो गई.

अम्मी बताया करती थी की ईदगाह के पास वाली जमीं उन्हें नसीब होती है जिन्हें अल्लाह अपने घर बुला लेते हैं. मैंने अम्मी को वह भी ढूंडा वहां भी अम्मी नहीं मिली. 17 सितम्बर को मेरा happy birthday आता है, इसी दिन हमारे गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेंदर मोदी जी का भी happy birthday आता है. मैं ग्यारह साल की हो गई हूँ.
मैं दो साल की थी जब अम्मी मुझसे नाराज होकर चली गई और फिर कभी नहीं लौटी.

मुझे अब भी याद है अम्मी मुझे सीने से लगाकर कोने में छुपी हुई थी. कुछ लोग न जाने क्यों हमारे घर पर पत्थर फेक रहे थे, सारे शीशे तोड़ दिए. अगर मैं ऐसा करती तो अम्मी बहुत नाराज होती लेकिन अम्मी उस दिन कुछ बोल ही नहीं रही थी. उन लोगो ने हमारा घर जला दिया मुझे न जाने क्या हुआ और मैं सो गई. और जब आंख खुली तो अम्मी नहीं थी. उस दिन मैं अम्मी को सलाम करना भूल गई थी और बिना सलाम किये ही सो गई,अम्मी नाराज होकर चली गई फिर कभी नहीं लौटी. मेरी सफ़ेद फ्रांक पर कुछ खून के दाग लग गए थे उस दिन, पता नहीं कहा से लगे, छुटते ही नहीं. ये फ्रांक अब छोटी हो गई है और पुरनी भी. ये फ्रांक मुझे मेरी अम्मी ने आखरी बार पहनाई थी. मेरी अम्मी की आखरी निशानी है बाक़ी सब तो आग में जल दिया गया. कैसे भी कर के ये दाग छूट जाए तो मेरी फ्रांक पहले जैसी हो जाएगी, लेकिन ऐसा कभी नहीं होगा. अम्मी लौट आए इस लिए मैं हर साल happy birthday वाले दिन रोज़ा रखती हूँ इस बार मोदी जी ने भी रोज़ा रखा है. उन्होंने कहा पूरा गुजरात उनका परिवार है.
अब अल्लाह मेरे गुनाह को माफ़ कर देंगे और मेरी अम्मी भी लौट आएगी.
लेकिन उन लोगो का गुनाह तो मुझसे भी बड़ा हैना जिन्होंने हमारा घर जलाया था. फिर तो अल्लाह उनसे भी नाराज हुए होंगे!
आप सब लोग अपनी अम्मी को सलाम जरुर कीजिये नहीं तो अल्लाह नाराज होंगे.


Monday, August 22, 2011

ये चिट्ठी अन्नाजी तक पहुंचा दो !


परनाम अन्नाजी,
हम सुने हैं की अप भूख हड़ताल कर रहे हैं कोई कानून पास कराइ के खातिर I जब आप अपने दल के साथ रामलीला मैंदान जा राहे थे तब हम आपका पीछा किये रहे I हम रिक्सा चला रहे थे इसलिए आप हमे देख नहीं पाए होंगे, और भीड़ भी तो बहुत था I अन्ना बाबा हम बिहार के छोटे से गाँव से हैं और आधा जिन्दगी पूरा होने अ गया हमारा दिल्ली की सडको पर रिक्सा चलाते और लोंगो का गाली खाते I आप के भूखे रहने से जब कानून पास हो सकता है तो इस हिसाब से हमारा भी एक मांग है I हमारे जैसा हजारो रिक्सा वाला दिन भर अपना पेट गाली से ही भरता है, कभी कोई किराया देने पे गाली देता है तो कभी जाम लग जाने पर I और कोई कोई बड़े दिल वाला तो थप्पड़ भी जड़ देता है I
अन्नाजी आप जिस जनता के लिए भूखे बैठे हैं यही जनता हमारी इज्जत और मेहनत को रौंदने में दू मिनट नहीं लागाता I अन्नाजी छोटा सा गुजारिस है अबकी बारी जब आप जीत कर रामलीला मैदान छोड़ोगे तो हमारे रिक्सा पर बैठ कर चलना, तिरंगा लहराते हुए I जब जनता इ देखेगी की आप हम रिक्सा वालो का इतना फिकर करते हैं तो सायद हम लोग को दिन में गाली की जगह इज्जत मिलने लगे I और हा अन्ना बाबा इ कदम से आपका आन्दोलन प्रदूसन मुक्त हो जाएगा I
हम को नहीं मालूम हमारा चिट्ठी आप तक कैसे पहुंचेगा लेकिन कोसिस किये हैं सायद आपके कानो तक हमारा गुजारिस पहुँच जाए I
अब आप जब रामलीला मैंदान छोड़ेंगे तो हम आपको सामने वाली सड़क पर दिखेंगे I आज कल सड़क पर तिरंगे झंडे लावारिस पड़े रहते हैं, दिन भर लोग नारा लागाता है टीवी में आने की खातिर और फिर झंडा ऐसे ही छोड़ देता है I हम इ झंडे को सड़क से उठाए हैं और अपना पूरा रिक्सा सजाए हैं आपके खातिर I

अन्ना बाबा हम आपका विजय का कामना करते है
रिक्सा वाला IIII

Saturday, May 14, 2011

अम्मी तुम्हारी याद आती है


भूले- बिसरे लम्हों को,
यादों की डोर से पिरोया,
आँखों में नमी आ गई
न जाने क्यों ये दिल रोया !

उनकी तस्वीर ज़हन में है
तस्वीर पर बदनसीबी की धूळ है,
आँखों के नमकीन पानी से धूळ हटी,
नूर ही नूर नज़र आया,
कंही ये खुदा तो नहीं,
हाँ, खुदा की खुदाई को पाया,
तस्वीर में अम्मी को देख पाया !

आज भी वो मेरे कमरे का रुख करती हैं,
किताबो को सहलाती हैं,
बेजान चीजों में मेरा एहसास पाती हैं!
अलमारी का सामान बिखरा तो नहीं है ,
फिर भी हर रोज़ सजाती हैं!
कुछ टूटे ख्वाबो के टुकड़े मेरे तकिये पर भी हैं,
हर टुकड़े को खुदा के सामने रखती हैं,
हर दुआ में एक ख्वाब काबुल करवा लेती हैं!

आधे खुले दरवाजे से पापा ये सब देखते हैं,
आधे - अधूरे अल्फाजो में गुस्से में कहते हैं,
"आधे सफ़र में जो छोड़ गया
उसे याद कर तू दिल न जला,
क्यों खो गया है तेरा बेटा
कभी खुदा से भी तो कर शिकवा गिला" !

दुआओ का असर है जो मैं जन्नत में हूँ.......
न जाने क्यों हर रोज़,
भूले बिसरे लम्हों को ,
यादों की डोर से पिरोता हूँ,
आँखों में नमी आजाती हैं ,
न जाने क्यों तन्हाई में रोता हूँ !!!

-आज़म खान


Sunday, February 13, 2011

प्यार और पहरा



प्यार पर किसी का ज़ोर नहीं

लेकिन प्यार के ठेकेदार तो हैं

आशिकी का कोई वक्त तय नहीं

लेकिन प्यार 14 feb को ही होना है !

फिर प्यार वाले कबूतर

बागों में , theater में

Restorent में , pub में

लोगो की नजरो में

और कुछ news में होंगे

कुछ लम्बी सैर पे

फटफटिया पर चिपके होंगे

काले शीशे वाली कारों में

कुछ नहीं तो बस , train में

हाथो में हाथ लिए सड़को पर होंगे !


कबूतर जो आज़ादी से उड़ेंगे

तो ठेकेदारों को संस्कृति याद आएगी

उन्हें इनकी आज़ादी पसंद न आएगी

बाज़ार में तोड़ फोड़ हंगामा करेंगे

और cardwale अंकल की दुकान तोड़ेंगे !

कम से कम इस बार तो माफ़ करो

कबूतरों से कह दो खुले आम

आवारगी में चोंच्बाज़ी न करे

यूँ प्यार खुले आम न करे

शर्म वाली नजरो ,हदों में रहे

ठेकेदारों से कहदो तोड़ फोड़

करके लोकतंत्र में जंगल राज न करें !

लेकिन फिर भी

प्यार वजह इस जंग की होगी

और प्यार का जिक्र भी न होगा

हर बार ऐसा ही होता आया है

इस बार भी ऐसा ही होगा

-आज़म खान

Saturday, February 12, 2011

AARJOO



मोहब्बत के एहसास हैं

जब से मिला तुम्हारा साथ

हसरत यूँ संग जीने की

अब इरादों में बदलने लगी है

दिल तो तुम्हारा हो गया था

ये धड़कने भी बेकाबू हैं

हमेशा तुम ही नजरो में हो

मेरी यादों में रहने लगी हो

साँसों में खुसबू है तुम्हारी

तुम से जुड़े कुछ अरमान हैं

रूहानियत है या पाक मोहब्बत

जो भी है सिर्फ तुमसे है

हाँ ! मुझे तुम से मोहब्बत है

कह दो की ये हकीकत है

गर जो ये सिर्फ ख्वाब है

तो मुझे इसी बेखुदी में रहने दो

तुम साथ हो , इसी आरजू में जीने दो

आज़म खान

Thursday, February 10, 2011

Tohfaa



तेरी मेरी वो बाते
वो अनबन और लड़ने के बहाने
वो पुरानी साइकल
Second Hand किताबे
छोटी जो हो जाती shirt
तो तुझे fit हो जाती !
तू छोटा भाई जो है
तेरी हर खता माफ़ हो जाती
कहीं नासमझी में छुप जाती !
कितना तुझे सताया
कभी बातो से
तो कभी हाथो से मारा
फिर तुझे चुप करने
आंसू पोंछने भी तो आया !
बड़े होने का गुरुर है मुझे
जो तुझ जैसा छोटा भाई पाया
ये उम्र में बड़ा होना ही है
जो तुझे प्यार दुलार दिखा न पाया !
जन्मदिन पे तेरे, दुआ मेरी खुदा तक जाए
तेरे दिल की हर आरजू कुबूल हो जाए !


आज़म खान

Sunday, January 23, 2011

shoping on republic day



साहब झंडा लेलो
यूँ तो कीमत न है इस झंडे की
लेकिन फिर भी एक रुपया देदो

झंडे बेच रहा हूँ देश को नहीं
मेरी पुकार आपको चुभती तो नहीं
अब इस पे भी Discount न मांगना
एक रुपया खर्चा है तो याद रखना
तिरंगा ख़रीदा है , सजावट नहीं ,
साहब Republic Day है दिवाली नहीं
तिरंगे को अगले दिन फेकना नहीं !

देशभक्ति एक दिन में ख़तम हो जाए
तो इसी सड़क से गुजरना
इसी सिग्नल पे मिलूँगा
तिरंगा लौटा देना
और अपना रुपया लेजाना
साहब सिग्नल ग्रीन हो गया !

साहब झंडा लेलो
यूँ तो कीमत न है इस झंडे की
लेकिन फिर भी एक रुपया देदो !
-आज़म खान