
टीम अन्ना के लगभग तमाम सदस्य आज भ्रष्टाचार के सवालों में घिरे हुए हैं. जलपुरुष राजेंदर सिंह और राजगोपालजी का टीम अन्ना से पल्ला झाड़ लेना इस बात का सबूत है की सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. जिस अन्ना आन्दोलन से देश भर को उम्मीद थी अब वो फीका पड़ता जा रहा है. जनता की आवाज बन कर उभरे अन्ना हजारे मौन हैं, लेकिन ब्लॉग पर लिखित रूप में बोल रहे है. सब कुछ राजनीतिक ड्रामे से ज्यादा कुछ नहीं लग रहा. टीम अन्ना के प्रमुख सदस्य प्रशांत भूषण, अरविन्द केजरीवाल और किरण बेदी विवादों के बाद उसी जाल में फंसते चले जा रहे हैं जो उन्होंने सरकार के लिए तैयार किया था. सब पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं. नैतिकता की अब कोई बात न करे तो ही बेहतर है. अब बात तो इस बात पर आके रुकी है की कौन कम भ्रष्ट है. किरण जी ने जो किया या उनसे जो हुआ वो तकीनीकी तौर पर तो भ्रष्टाचार ही है.पूरे प्रकरण से एक बात तो साफ़ है की मीडिया ने टीम अन्ना को आइना दिखाया है. जनता की अगुवाई करने के लिए नैतिकता का पाठ पढ़ाने वालों को अपना दामन भी पाक साफ़ रखना चाहिए.
जिन के दामन पर दाग है क्या वो जनलोकपाल के साबुन से भ्रष्टाचार का दाग जनता की जिन्दगी से मिटा पाएँगे? अन्ना ब्रांड से जनलोकपाल साबुन को पॉपुलर तो बना दिया गया है लेकिन संसद की फैक्ट्री से जब ये बन कर निकलेगा तो ये कितना भरोसेमंद होगा ये बताने के लिए तो अन्ना जी को एक और ब्लॉग पोस्ट लिखना चाहिए. जनता के पास अभइ सस्ता आकाश नहीं पहुंचा है तो सब लोग उनके ब्लॉग पोस्ट नहीं पढ़ सकते, अन्ना जी मौन व्रत तोडिये और अब ये बताएं की क्या जनलोकपाल के दायरे से टीम अन्ना बाहर है? जनता को अन्ना जी के जवाब का इंतज़ार है.
No comments:
Post a Comment