खेल खेल में शायद देश का गौरव बढ़ ही जाना है,
क्यों है २ अक्टूबर की छुट्टी ,क्या किसी को याद न आना है !!!
मेहमानों की खिद्मित्दारी में राजधानी दिल्ली तो पस्त है,
बेईमानी और बटवारे की खबरों में बाकि जनता व्यस्त है !!!
हर दफ्तर में जिस तस्वीर पे सूखे फूलो का हार है,
सूख तो आँखों का पानी गया है जो देश का ये हाल है !!!
गोली और पत्थर से हर मुद्दे पर बहस होती है,
ऐसे में देश में अहिंसा दिवस की क्या अहमियत है!!!
जिन सत्य अहिंसा के सिद्धांतो से युवा घबराता है,
उन्ही को फ़िल्मी परदे पर मुन्ना सर्किट की जबानी अपनाता है !!!
ईश्वर अल्लाह तेरो नाम ये गीत अब कम सुनने में आता है,
इसीलिए तो अब भगवन भी भक्तो की सुनने से कतराता है !!!
रिश्वत की नोट गिनते हुए बापू तो याद आते नहीं हैं,
जब अनाज सड़ जाता है और गरीब भुखमरी से मर जाता है,
खेतो में क्रांति लाने वाले लाल बहादुर भी तो याद नहीं हैं,
इस बार भी २ अक्टूबर पे कुछ याद न आना है,
मस्ती में मस्त है देश , weekend जो मानना है !!!!
-आज़म खान
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