Friday, October 8, 2010


कुछ खिलोने आज भी साथ है कुछ बचपना आज भी है

कुछ यादे आज भी साथ है कुछ दर्द आज भी दिल में है

कुछ दोस्त आज भी साथ है कुछ रिश्ते यूही टूटे जा रहे है

कुछ उम्र बढती जा रही है कुछ वक्त सख्त होते जा रहा है

कुछ बाते अनकही है जो आज भी दिल में चुभती जा रही है

कुछ ख़त लिखे है लेकिन कुछ पते खोते जा रहे है

कुछ बंधन खुल रहे कुछ में गांठ पड़ती जा रही है

कुछ तो खास था मेरे बचपन में जो अब खो गया है

कुछ भी तो नहीं इस जंहा में दादी की परियो का जंहा कंहा है

कुछ आंसू है आँखों में मेरी माँ का आंचल कंहा है

कुछ झरोखे तो है पर उनसे कुछ नज़र नहीं आता है

कुछ पल हसने के तो होते है लेकिन उनमे खुशिया कंहा है

कुछ खिलोने आज भी साथ है लेकिन खेलना नहीं आता है !

- आज़म खान

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