Friday, October 8, 2010


कुछ खिलोने आज भी साथ है कुछ बचपना आज भी है

कुछ यादे आज भी साथ है कुछ दर्द आज भी दिल में है

कुछ दोस्त आज भी साथ है कुछ रिश्ते यूही टूटे जा रहे है

कुछ उम्र बढती जा रही है कुछ वक्त सख्त होते जा रहा है

कुछ बाते अनकही है जो आज भी दिल में चुभती जा रही है

कुछ ख़त लिखे है लेकिन कुछ पते खोते जा रहे है

कुछ बंधन खुल रहे कुछ में गांठ पड़ती जा रही है

कुछ तो खास था मेरे बचपन में जो अब खो गया है

कुछ भी तो नहीं इस जंहा में दादी की परियो का जंहा कंहा है

कुछ आंसू है आँखों में मेरी माँ का आंचल कंहा है

कुछ झरोखे तो है पर उनसे कुछ नज़र नहीं आता है

कुछ पल हसने के तो होते है लेकिन उनमे खुशिया कंहा है

कुछ खिलोने आज भी साथ है लेकिन खेलना नहीं आता है !

- आज़म खान

Wednesday, October 6, 2010

अब तो जागे !!


अब तो मैं और अप सिर्फ जागते है चाय और खबरों के साथ ,

जगे हो तो चलो पड़ोस के आंगन दो घर छोड़ने के बाद !!

एक लाश पड़ी है तिरंगे में आधी अधूरी कल के धमाके के बाद ,

वजह तो खबरों में मिली होगी ,शायद आंतकवाद या नक्सलवाद !!

मैं भूल जाऊंगा आप भूल जाएँगे गुजरते हुए वक्त के साथ ,

लेकिन अंधी माँ क्या करेगी टुकडो में बटी बेटे की लाश के साथ !!

कभी जो निकलो उस वीरान घर के आगे से एक अरसे के बाद ,

उसी गली में मिलेगी एक अंधी बूढी , पुराने सवाल के साथ ,

“कितने हुए थे उसके बेटे के टुकड़े उस धमाके के बाद ” ?

क्या जवाब देंगे पगली माँ को ,पढ़े लिखे रुसुक वाले है आप !

या निकल जाएँगे आगे नजरे चुराकर अपने मरे हुए जमीर के साथ ,

अब तो मैं और आप सिर्फ जागते है चाय और खबरों के साथ !!!!

- आज़म खान

Friday, October 1, 2010


खेल खेल में शायद देश का गौरव बढ़ ही जाना है,

क्यों है २ अक्टूबर की छुट्टी ,क्या किसी को याद न आना है !!!

मेहमानों की खिद्मित्दारी में राजधानी दिल्ली तो पस्त है,

बेईमानी और बटवारे की खबरों में बाकि जनता व्यस्त है !!!

हर दफ्तर में जिस तस्वीर पे सूखे फूलो का हार है,

सूख तो आँखों का पानी गया है जो देश का ये हाल है !!!

गोली और पत्थर से हर मुद्दे पर बहस होती है,

ऐसे में देश में अहिंसा दिवस की क्या अहमियत है!!!

जिन सत्य अहिंसा के सिद्धांतो से युवा घबराता है,

उन्ही को फ़िल्मी परदे पर मुन्ना सर्किट की जबानी अपनाता है !!!

ईश्वर अल्लाह तेरो नाम ये गीत अब कम सुनने में आता है,

इसीलिए तो अब भगवन भी भक्तो की सुनने से कतराता है !!!

रिश्वत की नोट गिनते हुए बापू तो याद आते नहीं हैं,

जब अनाज सड़ जाता है और गरीब भुखमरी से मर जाता है,

खेतो में क्रांति लाने वाले लाल बहादुर भी तो याद नहीं हैं,

इस बार भी २ अक्टूबर पे कुछ याद न आना है,

मस्ती में मस्त है देश , weekend जो मानना है !!!!

-आज़म खान