
कुछ खिलोने आज भी साथ है कुछ बचपना आज भी है
कुछ यादे आज भी साथ है कुछ दर्द आज भी दिल में है
कुछ दोस्त आज भी साथ है कुछ रिश्ते यूही टूटे जा रहे है
कुछ उम्र बढती जा रही है कुछ वक्त सख्त होते जा रहा है
कुछ बाते अनकही है जो आज भी दिल में चुभती जा रही है
कुछ ख़त लिखे है लेकिन कुछ पते खोते जा रहे है
कुछ बंधन खुल रहे कुछ में गांठ पड़ती जा रही है
कुछ तो खास था मेरे बचपन में जो अब खो गया है
कुछ भी तो नहीं इस जंहा में दादी की परियो का जंहा कंहा है
कुछ आंसू है आँखों में मेरी माँ का आंचल कंहा है
कुछ झरोखे तो है पर उनसे कुछ नज़र नहीं आता है
कुछ पल हसने के तो होते है लेकिन उनमे खुशिया कंहा है
कुछ खिलोने आज भी साथ है लेकिन खेलना नहीं आता है !
- आज़म खान