जैसे किसी फिल्म के नाम से उसकी कहानी का अंदाजा लग जाता है वैसी ही उम्मीद इस लेख के शीर्षक से न करे. "अंग्रेजी शेरनी के दूध की तरह है जो पीता है वो दहाड़ता है" ये बाबा साहेब आंबेडकर ने कहा था. वैसे अंग्रेजी भाषा से तल्खी रखने वाले लोग इसे अंग्रेजो की लुंगी भी कहते है जिसे अंग्रेज हिन्दुस्तान छोड़ते हुए जान पूछ कर छोड़ गए या यूँ कहे की फेक गए. हिन्दुस्तान में अंग्रेजी हिंदी की सौतन बनके आई और अब आलम ये है की अंग्रेजी न बोल पाना बहुत बुरी कमी लगता है. अंग्रेजी बोलने से छाती चौड़ी होती है या नहीं इस पर हिन्दुस्तान में शोध जरुर होना चाहिए. और एक शोध इस बात पर भी होना चाहिए की हिंदी बोलते हुए भारतीय होने पर गर्व कितना होता है ?
अंग्रेजी सिखाने वाली फैक्ट्रियां हिंदी भाषी छेत्रों में किसी महामारी की तरह फ़ैल रही हैं. कोई ४०० में अँगरेज़ बना रहा है तो कोई ५०० में क्रैश कोर्स करा रहा है. कोई अमेरिकेन अंग्रेजी सिखा रहा तो कोई ब्रिटिश. अंग्रेजी सिखाने वाली फक्ट्रियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. जाहिर है अंग्रेजी सीखने वालों की भी कमी नहीं है. आखिर ऐसा क्यों है ? अंग्रेजी के प्रति इतना लगाव क्यों है ? इसके पीछे कई वजह है. हिंदी को भले ही राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिया गया हो लेकिन आज भी सरकारी महकमो में अंग्रेजी का प्रयोग ही ज्यादा होता है. अब तो देश के नेता भी बड़े-बड़े मौको पर अंग्रेजी में ही भाषड़ देना पसंद करते हैं. अंग्रेजी बोलने वालो के लिए रोजगार के अवसर हिंदी बोलने वालो की अपेक्षा ज्यादा हैं. आज के माता पिता भी अपने बच्चो को अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में ही पढ़ना चाहते हैं. एक तर्क ये भी है की गडित और विज्ञान जैसे विषयों को हिंदी पढना कठिन है और अंग्रेजी में पढना आसान. शायद इसीलिए हिंदी साहित्य आज कंगाली के दौर से गुजर रहा है. जितनी चर्चा अंग्रेजी के लेखकों की होती है उतनी ख्याति हिंदी के लेखकों को नहीं मिल पाती. क्या ये अंग्रेजीकरण का दौर हिंदी के लिए खतरे की घंटी है या सिर्फ एक लहर है जो कुछ सालों में ठंडी पड़ जाएगी. ऐसा नहीं है की हिंदी लुप्त होने के कगार पर है या फिर अंग्रेजी सीखने में कुछ खराबी है. किसी भी भाषा का ज्ञान हमारी कुशलता को बढ़ाता ही है. लेकिन आम बोल चाल में हिंदी की घटती प्रठिस्ता यह प्रश्न जरुर खड़ा करती है की हिंदी का भविष्य क्या होगा ?
अंग्रेजी से हिंदी को कभी खतरा नहीं था और न होगा. लेकिन अंग्रेजी मानसिकता का हिंदी मानसिकता पर हावी होना खतरनाक है. आप कैसे खुद को आज़ाद कहेंगे जब आप की सोंच पर अंग्रेजी की छाप दिखेगी. ज़रा सोचिये हिंदी में बनने वाली फिल्मे अगर खलिश अंग्रेजी में बननी शुरू हो जाएँ तो क्या उतना ही मजा आएगा. हिन्दुस्तानी हीरो हिरोइन से अगर अंग्रेजी में इज़हार करेगा तो क्या सीन उतना रोमान्टिक लगेगा. वो कुछ कुछ होता है वाली फीलिंग शायद न आ पाए. हिंदी सिर्फ भाषा नहीं एक एहसास है उसे अपने जीवन में ज़िंदा रखिये. अंग्रेजी के अपने फायदे हैं लेकिन हिंदी जैसा कोई नहीं. रही बात हिंदी की दहाड़ की तो "भारत माता की जय" बोल कर देखिये, छाती चौड़ी भी होती है और गर्व भी होता है.