फेसबुक, ट्विटर, याहू और न जाने क्या-क्या, फोन से बात-चीत या फिर मेसेज से चेटिंग, हर वक्त बक- बक. आखिर ये हो क्या रहा है इतनी सारी बाते आती कहा से हैं. इतनी मशरूफ जिन्दगी में वक्त कहाँ से मिलता है हर वक्त बक- बक करने के लिए . कहीं ये कोई नई बीमारी तो नहीं या फिर कोई नया टशन है. जो भी हो इससे अछूता कोई नहीं है.
जरा सोचिये अगर इस संसार में लोग आपस में बात-चीत करना बंद कर दे तो क्या मंजर होगा. संसार गूंगा तो हो ही जाएगा और जब सुनने के लिए बाते नहीं होंगी तो बहरा भी हो जाएगा. फिर भगवान् को खुद ही पूछना पड़ेगा " इतना सन्नाटा क्यों है भाई. मतलब ये की बोलना तो बनता ही है. तो फिर बोलने में बुराई क्या है. लेकिन बोलने में सिर्फ बुराई ही ज्यादा है. घंटो फ़ोन पर लगे रहते हो किसी न किसी की बुराई ही तो करते हो. अनलिमिटेड पैक डलवाने के बाद बक-बक करने का पूरा लाइसेंस मिल जाता है. फिर चाहे वो इन्टरनेट पैक हो या फिर फोन पैक. फेसबुक के आने के बाद से तो बक-बक करना और भी आसान हो गया है. जेब खर्च में से थोड़े से रुपये बचाने हैं और फिर फोन पर या लैपटॉप में हो जाओ शुरू, एक दम लापरवाह होकर. ओह ! माफ़ करिए बेपरवाह होकर . बेपरवाह सुनने में थोडा ज्यादा कूल लगता है. आज कल हम सब से बात करते हैं चाहे वो अपना हो या पराया, या कोई परदेसी. हम अब सब कुछ बाँटने लगे हैं. शायद सब ये मानने लगे हैं की सुख बाँटने से बढ़ता है और दुःख बाँटने से कम होता है. लेकिन सुख थोडा कम बंटता है और दुःख तो मुफ्त में ही मिल जाता है. बक-बक का हुनर तो सब के पास है. ये सुविधा सबको उपलब्ध है. अगर फेसबुक और फोन से परहेज करते है तो भी आप बक-बक कर सकते है. डाकू डकैती के लिए बदनाम हैं तो गाँव का चौपाल बकैती के लिए मशहूर है. ओहो ! आप फिर अपने आपको अलग-अलग सा मेहसूस करने लगे. अब आप तो शहरी बाबू हैं आपके यहाँ गाँव वाला चौपाल तो नहीं होगा. मगर हाँ ! वो विदेशी कोफ़ी शॉप और बर्गर-पीज़ा वाले रेस्टोरेंट तो होंगे ही, खाते जाइये और बक- बक करते जाइये.
इतनी बकैती के बाद जब आप थक कर घर पहुचते हैं तो माँ का कहना "खाना खा ले" कानो को चुभता होगा, बीवी प्यार से माइके जाने की बात कर दे तो दिमाग की नसे तन जाती होंगी. अगर आपके पड़ोस से मार पिटाई की आवाज सुनाई दे तो भी आप पड़ोसी से हाल खबर लेना नहीं चाहेंगे. वैसे क्या आप जानते हैं की आपके पड़ोस में रहता कौन है ? कैसे जानेगे, अब हम बक-बक ज्यादा करते हैं, सिर्फ बक-बक. एक दूसरे की परवाह कम करते हैं. हम शायद बेपरवाह हैं या फिर लापरवाह. चलिए कल से बक-बक संसार में भावनाओ के रंग भी भरते हैं. एक चाय की प्याली होगी और हमारी और आपकी बक-बक. अब इसकी उसकी बात मत करना. कुछ अपनी कहना और कुछ मेरी सुनना. तो फिर कल सुबह की चाय आपके साथ. पहले कहा जाता था तूने मेरा नमक खाया है अब कहा जाएगा तूने मेरी चाय पी है. अब बक-बक समाप्त.
आज़म खान
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