कुछ खो सा रहा था
तुम से दूर हो रहा था
कुछ कदमो का फासला था
फिर भी न तय हो रहा था !
आँखों में आंसुओं का शैलाब लिए
क्यों तुम खामोश खड़ी थी
घर से गली तक तो चली आई तुम
क्यों मुझ तक न अ सकी तुम
कुछ तो था जो हमें रोक रहा था
खता न तेरी थी न मेरी
फिर क्यों ये रिश्ता तरस रहा था !
तुम रोकना चाहती थी मुझे
मैं मुड़ कर हमेशा की तरह तुम्हे न देख पाया
तुम्हे अकेले उस मोड़ पर छोड़ आया
मैं तुमसे दूर जा चूका था !
काश हम खुद में न सिमटे रहते
दरमियाँ जो फासले है उन्हें एहसासों से बाट लेते !