आँखों में ख्वाब जम के मर गए,
सांसों में सिर्फ सिसकियाँ हैं !
बातों में अनकहे अल्फ़ाज रह गए,
एहसासों में सिर्फ ग़म है!
उम्मीदों पर अँधेरे कही से आ गए,
हवाओं में काटों की चुभन है !
सडको के दामन भीग कर रह गए,
कोई सूरज आंच देना भूला है !
हाथ रगड़ खाते गर्मी बटोरते रह गए,
तनहा जिन्दगी लावारिस सी है !
बाशिंदे घरों में कैद रह गए,
करवटें बदलता शहर ठण्ड में मजबूर है !
-आज़म खान