Sunday, January 8, 2012

एहसासों में सिर्फ ग़म है!


आँखों में ख्वाब जम के मर गए,
सांसों में सिर्फ सिसकियाँ हैं !
बातों में अनकहे अल्फ़ाज रह गए
एहसासों में सिर्फ ग़म है!
उम्मीदों पर अँधेरे कही से गए
हवाओं में काटों की चुभन है
सडको के दामन भीग कर रह गए
कोई सूरज आंच देना भूला है
हाथ रगड़ खाते गर्मी बटोरते रह गए,  
तनहा जिन्दगी लावारिस सी है
बाशिंदे घरों में कैद रह गए
करवटें बदलता शहर ठण्ड में मजबूर है !   
                        -आज़म खान 

Wednesday, January 4, 2012



हो  साफ  जिसका  दामन  ,
करे  बात  तरक्की  की ,
वोटर  अब  चाहे  जीत  उसी  की  !

  हाथ  पर  यकीं  करना 
  मनमानी करते  हाथी  पर 
  सालों  से  खड़ी  साइकिल  पर 
और    ही  बदरंग  होते  कमाल  पर 
सबको  अंगूठा  दिखाना  इसबार 
लेकिन  वोट  देना  सिर्फ  उधार  !

तरक्की  हक़  से  लेना  करना    गुहार 
स्कूल,  सड़क,  अनाज,  सब  लेना 
वोट  के  बदले  नोट    लेना 
नौकरी  के  खोखले  वादे  नहीं 
आरक्षण  का  धोखा  नहीं 
अब  किसी  बेईमान  से  सरोकार  नहीं 
दागियों  की  जगह  सरकार  में  नहीं  !

आजमा रहा  सालों से किस्मत  वोटर , है  सोया  नहीं 
UP विकास  की  पटरी  पर  धीमा  है , पिछड़ा  नहीं !
                              -आज़म खान