Thursday, October 27, 2011

अफ्स्पा फिलहाल जरुरी है !

अकेले जम्मू कश्मीर में अमनबहाली में हजारों जवानों की जान गई है. सरकारें अफस्पा को हटाने के लिए सोच भी न पाई थी और आतंकियों के हौसले बढ़ने लगे हैं.कश्मीर में शांति बहाली सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफस्पा) की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. भारतीय सेना अफस्पा के बिना शायद घाटी में आसानी से अतान्त्कावाद को नहीं कुचल पाती. पिछले कुछ सालों में घाटी के हालात लगातार सुधर रहे हैं. पिछले साल की हिंसात्मक घटनाओ को छोड़ दिया जाए तो सेना ने प्रसंशनीय काम किया है. सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून सैनिक कारवाइयों को अंजाम तक पहुचाने में काफी मदत्गार रहा है. लेकिन एक तरफ जहाँ पुर्वोत्री राज्यों और घटी में शांति बहाल हो रही है वहीँ सेना के द्वारा अफस्पा के दुरुपयोग की घटनाओ में भी काफी बढ़ोतरी हुई है. सेना की साख पर बढ़ते बदनामी के दाग उन शहीदों के लिए शर्मिंदगी का सबब है जिन्होंने देश के लिए कुर्बानी दी है. सेना के जवानों पर फर्जी एन्कोउन्टर से लेकर बलात्कार जैसे संगीन आरोप लगते रहे हैं. सेना को अपने स्तर पर इन घटनाओं की गंभीरता से जांच पड़ताल करनी चाहिए और दोषियों का सज़ा देनी चाहिए.
अफस्पा को हटा देने से आम जनता की समस्याएँ कम होने के बजाए और बढ़ जाएंगी. अफस्पा के बगैर सैनिक कारवाई पर असर पड़ेगा और आतंकी बेख़ौफ़ हो जाएँगे. सच ये भी है की सिर्फ बन्दूक के दम पर अमन बहाली पूरी तरह से नहीं हो सकती. आतंक से प्रभावती राज्यों में सरकारों के सामने सबसे बड़ी चुनौती जनता को बुनियादी सुविधाओं के साथ साथ अच्छी शिक्षा और रोजगार के इंतजामात करने की है. सेना के बगैर आतंक का खात्मा संभव नहीं है. जरुरी ये है की अफस्पा के दुरुपयोग को रोका जाये और सरकार आतंक प्रभावित राज्यों में प्रगति के काम शुरू करे. इससे जनता में सरकार और सेना के प्रति विश्वास बढेगा. जब सरकार और सेना दोनों जनता के साथ होंगे तो अफस्पा का दुरूपयोग नहीं हो पाएगा.

Monday, October 24, 2011


टीम अन्ना के लगभग तमाम सदस्य आज भ्रष्टाचार के सवालों में घिरे हुए हैं. जलपुरुष राजेंदर सिंह और राजगोपालजी का टीम अन्ना से पल्ला झाड़ लेना इस बात का सबूत है की सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. जिस अन्ना आन्दोलन से देश भर को उम्मीद थी अब वो फीका पड़ता जा रहा है. जनता की आवाज बन कर उभरे अन्ना हजारे मौन हैं, लेकिन ब्लॉग पर लिखित रूप में बोल रहे है. सब कुछ राजनीतिक ड्रामे से ज्यादा कुछ नहीं लग रहा. टीम अन्ना के प्रमुख सदस्य प्रशांत भूषण, अरविन्द केजरीवाल और किरण बेदी विवादों के बाद उसी जाल में फंसते चले जा रहे हैं जो उन्होंने सरकार के लिए तैयार किया था. सब पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं. नैतिकता की अब कोई बात न करे तो ही बेहतर है. अब बात तो इस बात पर आके रुकी है की कौन कम भ्रष्ट है. किरण जी ने जो किया या उनसे जो हुआ वो तकीनीकी तौर पर तो भ्रष्टाचार ही है.पूरे प्रकरण से एक बात तो साफ़ है की मीडिया ने टीम अन्ना को आइना दिखाया है. जनता की अगुवाई करने के लिए नैतिकता का पाठ पढ़ाने वालों को अपना दामन भी पाक साफ़ रखना चाहिए.
जिन के दामन पर दाग है क्या वो जनलोकपाल के साबुन से भ्रष्टाचार का दाग जनता की जिन्दगी से मिटा पाएँगे? अन्ना ब्रांड से जनलोकपाल साबुन को पॉपुलर तो बना दिया गया है लेकिन संसद की फैक्ट्री से जब ये बन कर निकलेगा तो ये कितना भरोसेमंद होगा ये बताने के लिए तो अन्ना जी को एक और ब्लॉग पोस्ट लिखना चाहिए. जनता के पास अभइ सस्ता आकाश नहीं पहुंचा है तो सब लोग उनके ब्लॉग पोस्ट नहीं पढ़ सकते, अन्ना जी मौन व्रत तोडिये और अब ये बताएं की क्या जनलोकपाल के दायरे से टीम अन्ना बाहर है? जनता को अन्ना जी के जवाब का इंतज़ार है.