Saturday, May 14, 2011

अम्मी तुम्हारी याद आती है


भूले- बिसरे लम्हों को,
यादों की डोर से पिरोया,
आँखों में नमी आ गई
न जाने क्यों ये दिल रोया !

उनकी तस्वीर ज़हन में है
तस्वीर पर बदनसीबी की धूळ है,
आँखों के नमकीन पानी से धूळ हटी,
नूर ही नूर नज़र आया,
कंही ये खुदा तो नहीं,
हाँ, खुदा की खुदाई को पाया,
तस्वीर में अम्मी को देख पाया !

आज भी वो मेरे कमरे का रुख करती हैं,
किताबो को सहलाती हैं,
बेजान चीजों में मेरा एहसास पाती हैं!
अलमारी का सामान बिखरा तो नहीं है ,
फिर भी हर रोज़ सजाती हैं!
कुछ टूटे ख्वाबो के टुकड़े मेरे तकिये पर भी हैं,
हर टुकड़े को खुदा के सामने रखती हैं,
हर दुआ में एक ख्वाब काबुल करवा लेती हैं!

आधे खुले दरवाजे से पापा ये सब देखते हैं,
आधे - अधूरे अल्फाजो में गुस्से में कहते हैं,
"आधे सफ़र में जो छोड़ गया
उसे याद कर तू दिल न जला,
क्यों खो गया है तेरा बेटा
कभी खुदा से भी तो कर शिकवा गिला" !

दुआओ का असर है जो मैं जन्नत में हूँ.......
न जाने क्यों हर रोज़,
भूले बिसरे लम्हों को ,
यादों की डोर से पिरोता हूँ,
आँखों में नमी आजाती हैं ,
न जाने क्यों तन्हाई में रोता हूँ !!!

-आज़म खान